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Friday, 13 July 2018

रथ यात्रा की ढेर सारी बधाई ....


रथ-यात्रा भारत के पवित्र त्यौहारों में से एक है । यह हिन्दुओं का त्यौहार है । यह उत्सव आषाढ़ मास में मनाया जाता है, जो प्राय: रन के महीने में पड़ता है ।

क्यों मनाया जाता है ?

यह उत्सव भगवान् जगन्नाथ के राम्मान में मनाया जाता है । जगन्नाथ को विष्णु के दस अवतारों में से एक अवतार माना जाता है ।

कैसे मनाया जाता है ?

इस उत्सव में भगवान् जगन्नाथ को मूर्ति को लकड़ी के बने एक भव्य और सुसज्जित रथ में रखते हैं । उनके साथ उनके बड़े भाई बलभद्र और बहिन सुभद्रा की मूर्तियों भी होती हैं । रथ बड़े समारोहपूर्वक नगर के प्रमुख बाजारों से गुजरता है । रथ में 16 पहिये दिखाये जाते है । यद्यपि रथ को खींचने वाले लकड़ी के घोडे भी रथ मे लगे होते हैं, लेकिन श्रद्धालुजन रस्सी के सहारे इसे खींचना बड़ा पुण्य का काम मानते हैं ।
रथ एक सप्ताह तक गंगा के किनारे (या किसी अन्य नदी के किनारे) खड़ा रहता है । इस बीच श्रद्धालु उनकी पूजा-अर्चना करते रहते है और तरह-तरह का चढ़ावा चढ़ाते है । एक सप्ताह के बाद पुनर्यात्रा शुरू होती है और उसी प्रकार समारोहपूर्वक रथ को मंदिर में लाकर मूर्तियों को वहाँ पुन: प्रतिष्ठित कर दिया जाता है ।

पुरी का रथ-यात्रा उत्सव:

पुरी में रथ-यात्रा उत्सव सबसे शानदार ढंग से मनाया जाता है । देशभर से हजारों श्रद्धालु भक्त इस उत्सव में भाग लेने के लिए पुरी जाते हैं । इस अवसर पर पुरी में इतनी भीड़ हो जाती है कि इसे संसार के सबसे बड़े उत्सवों में गिना जाता है । पुरी का रथ बड़ा भव्य है । यह देखते ही बनता है ।
यह प्राचीन रथ बनाने की कला का अच्छा नमूना है । यह लकड़ी का बना हुआ है । इसकी मीनारें गिरजाघर की मीनारों से मिलती-जुलती हैं । यह सोने और चाँदी के पत्तरों से मढ़ा हुआ है । इसमे तरह-तरह की चित्रकारी की गई है और लकडी की अनेक सुन्दर प्रकार की नक्काशी गई है ।
यह रथ बड़ा विशाल है । इसकी ऊँचाई 137 मीटर है तथा बीच का स्थान 107 मीटर लम्बा और उतना ही चौड़ा वर्गाकार है । रथ में 16 पहिये हैं । प्रलोक पहिये का व्यास मीटर है । रथ में घोड़े जुते दिखाये गए हैं, लेकिन इस विशाल रथ को भी रस्सियों के सहारे आदमी खींचते है । वे इसे बड़ा पुनीत कार्य मनाते हैं ।
पुरी में रथ-यात्रा समारोह सात दिनों तत्ह चलता हे । इसका प्रारंभ मंदिर से भगवान् जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की प्रतिमाओं को रथ पर स्थापित करने से होता है और एक सप्ताह बाद मंदिर में उन मूर्तियों की प्रुन: प्रतिष्ठा कर देने के बाद समाप्त होता है । इस अवधि में पूजा-अर्चना और हरि संकीर्तन होता रहता है; ब्राह्मणो और को भोजन कराया जाता है और दान दिया जाता है ।
रथ यात्रा का जुलूस देखने सड़क के दोनों ओर समूचे मार्ग पर लोगों की भारी भीड़ दिखाई देती है । सभी लोग रथ में स्थित भगवान् की मूर्ति के दर्शन करना और प्रसाद प्राप्त करना चाहते हैं । रथ के सामने आने पर अनेक लोग रस्सी पकड़कर कुछ देर रथ खींच कर अपने को धन्य मानते हैं । समूचे रास्तेभर रथ पर फूलों की वर्षा होती रहती है ।

उपसंहार:

पुरी के जगन्नाथ मंदिर का रथ दर्शनीय है । यह प्राचीन वास्तुकला का अनुपम नमूना है । इस अवसर पर पुरी मे भारी भीड को नियत्रित करने के विशेष प्रबध किए जाते हैं ।

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