Followers

Sunday, 4 November 2018

EDS:- भाई दूज के शुभ अवसर पर आप के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं आपके जीवन में सुख शांति और समृद्धि हमेशा बनी रहे .........edslov.blogspot.in


भाई दूज
इस दिन बहनें अपने भाई का तिलक करती हैं, उनका स्वागत सत्कार करती हैं और उनकी लम्बी आयु की कामना करती हैं. माना जाता है कि जो भाई इस दिन बहन के घर पर जाकर भोजन ग्रहण करता है और तिलक करवाता है, उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है. भईया दूज के दिन ही यमराज के सचिव चित्रगुप्त जी की भी पूजा होती है.

भाई दूज के लिए पूजा की प्रक्रिया क्या है?

- आज के दिन भाई प्रातःकाल चन्द्रमा का दर्शन करें.

- इसके बाद यमुना के जल से स्नान करें या ताजे जल से स्नान करें.

- अपनी बहन के घर जाएं और वहां बहन के हाथों से बना हुआ भोजन ग्रहण करें.

- बहनें भाई को भोजन कराएं और उनका तिलक करके आरती करें.

- भाई यथाशक्ति अपनी बहन को उपहार दें.

कौन हैं चित्रगुप्त महाराज और क्या है इनकी महिमा?

- चित्रगुप्त जी का जन्म ब्रह्मा जी के चित्त से हुआ था.

- इनका कार्य प्राणियों के कर्मों के हिसाब किताब रखना है.

- मुख्य रूप से इनकी पूजा भाई दूज के दिन होती है.

- इनकी पूजा से लेखनी, वाणी और विद्या का वरदान मिलता है.

इस दिन चित्रगुप्त जी की उपासना कैसे करें ?

- प्रातः काल पूर्व दिशा में चौक बनाएं.

- इस पर चित्रगुप्त भगवान के विग्रह की स्थापना करें.

- उनके समक्ष घी का दीपक जलाएं, पुष्प और मिष्ठान्न अर्पित करें. 

- उन्हें एक कलम भी अर्पित करें.

- इसके बाद एक सफ़ेद कागज पर हल्दी लगाकर उस पर "श्री गणेशाय नमः" लिखें.

- फिर "ॐ चित्रगुप्ताय नमः" 11 बार लिखें.

- भगवान चित्रगुप्त से विद्या,बुद्धि और लेखन का वरदान मांगें.

- अर्पित की हुई कलम को सुरक्षित रखें और वर्ष भर प्रयोग करें.

धनतेरस

कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। भारत सरकार ने धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।
 धन्वन्तरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर लोग धनिया के बीज खरीद कर भी घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।

धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है; जिसके सम्भव न हो पाने पर लोग चांदी के बने बर्तन खरीदते हैं। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है सुखी है और वही सबसे धनवान है। भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हैं।
धन्वन्तरि देवताओं के चिकित्सक हैं और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्व पूर्ण होता है। धनतेरस के संदर्भ में एक लोक कथा प्रचलित है कि एक बार यमराज ने यमदूतों से पूछा कि प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता क्या। दूतों ने यमदेवता के भय से पहले तो कहा कि वह अपना कर्तव्य निभाते है और उनकी आज्ञा का पालन करते हें परंतु जब यमदेवता ने दूतों के मन का भय दूर कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक बार राजा हेमा के ब्रह्मचारी पुत्र का प्राण लेते समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर हमारा हृदय भी पसीज गया लेकिन विधि के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर सके।

एक दूत ने बातों ही बातों में तब यमराज से प्रश्न किया कि अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है क्या। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यम देवता ने कहा कि जो प्राणी धनतेरस की शाम यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है। इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम लोग आँगन में यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं। इस दिन लोग यम देवता के नाम पर व्रत भी रखते हैं।

धनतेरस के दिन दीप जलाककर भगवान धन्वन्तरि की पूजा करें। भगवान धन्वन्तरी से स्वास्थ और सेहतमंद बनाये रखने हेतु प्रार्थना करें। चांदी का कोई बर्तन या लक्ष्मी गणेश अंकित चांदी का सिक्का खरीदें। नया बर्तन खरीदे जिसमें दीपावली की रात भगवान श्री गणेश व देवी लक्ष्मी के लिए भोग चढ़ाएं। कहा जाता है कि समु्द्र मंथन के दौरान भगवान धनवंतरी और मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था, यही वजह है कि धनतेरस को भगवान धनवंतरी और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है । धनतेरस दिवाली के दो दिन पहले मनाया जाता है।


नर्क चतुर्दशी 
तिथि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी

यह त्यौहार नरक चौदस या नर्क चतुर्दशी या नर्का पूजा के नाम से भी प्रसिद्ध है। मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल तेल लगाकर अपामार्ग (चिचड़ी) की पत्तियाँ जल में डालकर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती है। विधि-विधान से पूजा करने वाले व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो स्वर्ग को प्राप्त करते हैं।



शाम को दीपदान की प्रथा है जिसे यमराज के लिए किया जाता है। दीपावली को एक दिन का पर्व कहना न्योचित नहीं होगा। इस पर्व का जो महत्व और महात्मय है उस दृष्टि से भी यह काफी महत्वपूर्ण पर्व व हिन्दुओं का त्यौहार है। यह पांच पर्वों की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्यौहार है जैसे मंत्री समुदाय के बीच राजा। दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस फिर नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली फिर दीपावली और गोधन पूजा, भाईदूज।

पौराणिक कथा है कि इसी दिन कृष्ण ने एक दैत्य नरकासुर का संहार किया था। सूर्योदय से पूर्व उठकर, स्नानादि से निपट कर यमराज का तर्पण करके तीन अंजलि जल अर्पित करने का विधान है। संध्या के समय दीपक जलाए जाते हैं। इस त्योहार को मनाने का मुख्य उद्देश्य घर में उजाला और घर के हर कोने को प्रकाशित करना है। कहा जाता है कि दीपावली के दिन भगवान श्री राम चन्द्र जी चौदह वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या आये थे तब अयोध्या वासी ने अपनी खुशी दिए जलाकर और उत्सव मनाया व भगवान श्री राम चन्द्र माता जानकी व लक्छ्मण का स्वागत किया।
EDS ब्लॉग/ग्रुप  की ओर से आपको और आपके परिवार को नरक  चतुर्दशी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाए.....!
लक्ष्मी पूजा
पौराणिक कथा के अनुसार, धन की देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पत्नी, उनके भक्तों का दौरा करती हैं और उनमें से प्रत्येक पर उपहार और आशीर्वाद देती हैं। देवी का स्वागत करने के लिए, भक्त अपने घरों को साफ करते हैं, उन्हें फिनरी और रोशनी से सजाते हैं, और मीठे व्यंजन और व्यंजनों को प्रसाद के रूप में तैयार करते हैं। भक्तों का मानना ​​है कि खुश लक्ष्मी यात्रा के साथ हैं, उतनी ही वह परिवार को स्वास्थ्य और धन के साथ आशीर्वाद देती है।
माना जाता है कि लक्ष्मी दीवाली रात को धरती पर घूमती है। दिवाली की शाम को, लोग लक्ष्मी का स्वागत करने के लिए अपने दरवाजे और खिड़कियां खोलते हैं, और दीया रोशनी को अपने खिड़कियों और बालकनी के किनारों पर आमंत्रित करते हैं।

लोग शाम के दृष्टिकोण के रूप में नए कपड़े या उनके सर्वश्रेष्ठ संगठन पहनते हैं। फिर दीया जलाई जाती है, लक्ष्मी को पूजा की जाती है , और भारत के क्षेत्र के आधार पर एक या एक से अधिक अतिरिक्त देवताओं की पेशकश की जाती है; आम तौर पर गणेश , सरस्वती और कुबेरा । [2] लक्ष्मी धन और समृद्धि का प्रतीक है, और उसके आशीर्वाद एक अच्छे वर्ष के लिए आगे आते हैं।



गोवर्धन पूजा
कृष्णा ने अपने अधिकांश बचपन को ब्राज में बिताया , एक जगह भक्त अपने बचपन के दोस्तों के साथ कृष्णा के दिव्य और वीर शोषण के साथ मिलते हैं। [5] भगवत पुराण में वर्णित सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक , [5] में कृष्ण को माउंट गोवर्धन (गोवर्धन हिल), ब्राज के बीच में स्थित एक कम पहाड़ी उठाना शामिल है। [5] भगवत पुराण के अनुसार, गोवर्धन के नजदीक रहने वाले वन-निवास करने वाले गोत्रों ने इंद्र का सम्मान करके शरद ऋतु के मौसम का जश्न मनाया, बारिश और तूफान के भगवान। कृष्ण ने इस बात को स्वीकार नहीं किया क्योंकि वह चाहते थे कि ग्रामीण माउंट गोवर्धन की पूजा करें क्योंकि माउंट गोवर्धन वह है जो ग्रामीणों को अपनी आजीविका के लिए प्राकृतिक संसाधन प्रदान करता है। पेड़ ऑक्सीजन प्रदान करते हैं, घास ने मवेशियों के लिए भोजन प्रदान किया और प्राकृतिक सौंदर्य प्रदान किया। पर्वत गोकुल शहर में होने वाली प्राकृतिक घटनाओं के लिए जिम्मेदार था। इंद्र को इस सलाह से नाराज हो गया। श्रीकृष्ण, हालांकि शहर में लगभग हर किसी से छोटे होने के नाते, उनके ज्ञान और विशाल शक्ति के कारण सभी का सम्मान किया जाता था। तो, गोकुल के लोग श्री कृष्ण की सलाह से सहमत हुए। इंद्र को ग्रामीणों की भक्ति और कृष्ण की तरफ से दूर जाने से नाराज था। इंद्र ने अपने अहंकारी क्रोध के प्रतिबिंब में शहर में आंधी और भारी बारिश शुरू करने का फैसला किया। तूफान से लोगों की रक्षा के लिए, श्री कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाया और शहर के सभी लोगों और मवेशियों को आश्रय प्रदान किया। लगातार 7-8 दिनों के तूफान के बाद, गोकुल के लोगों को अप्रभावित होने के कारण, इंद्र ने हार मान ली और तूफानों को रोक दिया। इसलिए इस दिन एक त्यौहार के रूप में मनाया जाता है
दुनिया में हिंदू सक्रिय रूप से दीवाली के हिस्से के रूप में अनाकुत मनाते हैं और, अक्सर, गोवार्दन पूजा के साथ अनाकुत उत्सव को दिवाली उत्सव के चौथे दिन प्रदर्शन करते हैं। [1] हिंदुओं ने अनाकुत को बच्चों को धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को प्रसारित करने, भगवान से क्षमा मांगने और भगवान की भक्ति व्यक्त करने के लिए भी देखा है। अनाकट रंगीन चावल, रंगीन रेत, और / या फूल पंखुड़ियों से बने जमीन पर दीया (छोटे तेल लैंप) और रंगोली , सजावटी कला के साथ मनाया जाता है
गोवर्धन पूजा के सम्बन्ध में एक लोकगाथा प्रचलित है। कथा यह है कि देवराज इन्द्र को अभिमान हो गया था। इन्द्र का अभिमान चूर करने हेतु भगवान श्री कृष्ण जो स्वयं लीलाधारी श्री हरि विष्णु के अवतार हैं ने एक लीला रची। प्रभु की इस लीला में यूं हुआ कि एक दिन उन्होंने देखा के सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे हैं और किसी पूजा की तैयारी में जुटे। श्री कृष्ण ने बड़े भोलेपन से मईया यशोदा से प्रश्न किया " मईया ये आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं" कृष्ण की बातें सुनकर मैया बोली लल्ला हम देवराज इन्द्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं। मैया के ऐसा कहने पर श्री कृष्ण बोले मैया हम इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं? मैईया ने कहा वह वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती है उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है। भगवान श्री कृष्ण बोले हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाये वहीं चरती हैं, इस दृष्टि से गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है और इन्द्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं अत: ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए।

 इन्द्र लगातार सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हे एहसास हुआ कि उनका मुकाबला करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं हो सकता अत: वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और सब वृतान्त कह सुनाया। ब्रह्मा जी ने इन्द्र से कहा कि आप जिस कृष्ण की बात कर रहे हैं वह भगवान विष्णु के साक्षात अंश हैं और पूर्ण पुरूषोत्तम नारायण हैं। ब्रह्मा जी के मुंख से यह सुनकर इन्द्र अत्यंत लज्जित हुए और श्री कृष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहंकारवश भूल कर बैठा। आप दयालु हैं और कृपालु भी इसलिए मेरी भूल क्षमा करें। इसके पश्चात देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया।

दिवाली (Diwali 2018) हिंदुओं का सबसे बड़ा त्योहार है. दिवाली का त्योहार 5 दिनों तक चलता है. इसमें धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज आदि मनाए जाते हैं, जिसमें सबसे आखिरी दिन भाई दूज (Bhai Dooj 2018) का त्योहरा मनाया जाता है. इस तिथि से यमराज और द्वितीया तिथि का सम्बन्ध होने के कारण इसको यमद्वितिया भी कहा जाता है.



No comments:

Post a Comment

THANKS